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पक्षियों के अस्तित्व के लिए जरूरी है जैव विविधता

02 Mar, 2022

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में ईकोलाजी लेटर्स जर्नल में प्रकाशित एक नए अध्ययन के अनुसार उच्च स्तर की जैव विविधता से पक्षियों के विलुप्त होने का खतरा न्यून होता है। अध्ययन हुआ है

मुख्य बिंदु :-

  • अध्ययन के अनुसार, विविधता पक्षियों में समकालीन विलुप्त होने के निम्न स्तर के जोखिम से जडी है। इसके साथ ही ये विलुप्त होने के जोखिन वाले विभिन्न समुदायों को सुरक्षा भी प्रदान करते हैं।
  • इसमें शरीर का बड़ा आकार, कमजोर प्रसार क्षमता भी कारक होते हैं, जो विलुप्त के कारण हो सकते हैं। हालांकि यह भी पाया गया कि विविधताएं उन्हें विलुप्त होने से सुरक्षा प्रदान करती हैं और इसके कारण उनका अस्तित्व बना रहता है।
  • शोधकर्ताओं के अनुसार इसके निष्कर्ष विविधताओं को संरक्षित रखने के महत्व को रेखांकित करते हैं।
  • जैव विविधता पारिस्थितिकी तंत्र की कार्यक्षमता को प्रभावित करती है, लेकिन इसके बारे में बहुत कम जानकारी है कि इन विविधताओं का पारिस्थितिकी तंत्र की कामकाजी क्षमता से किस प्रकार का संबंध है और ये विलुप्त होने का जोखिम पैदा करते हैं।
  • अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि जैव विविधता का संरक्षण सिर्फ उन्हें बचाए रखने के उद्देश्य से ही नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि उसके लिए जरूरी घटक के प्रभावी संरक्षण को बढ़ावा देने के निमित्त उसमें हस्तक्षेप भी किया जाना चाहिए।
  • शोधकर्ताओं ने इस डाटा की सहायता से दुनियाभर में पक्षियों की विविधताओं का आकलन किया है। इसमें समुदाय में पाई जाने वाली प्रजातियों और उनके विकासानुक्रम के संबंध व फंक्शनल ट्रेट्स (कार्यात्मक लक्षणों) को शामिल किया गया।
  • इसके पश्चात उन्होंने उनकी विविधता और विलुप्त होने के जोखिम के आकलन के लिए संरचनात्मक समीकरण माडल का इस्तेमाल किया।
  • इस पर हुए पहले के अध्ययनों में यह बताया जा चुका है कि जैव विविधता अल्पावधि में अनुमानित परिणामों से जुड़ी है। विविधतापूर्ण सिस्टम पर हमले का जोखिम कम होता है और उसके घटकों में ज्यादा स्थायित्व होने के साथ ही वे रोगों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होते हैं। इससे उनकी उत्तरजीविता को मजबूत आधार मिलता है।
  • इनमें दुनियाभर के पक्षियों के 99 प्रतिशत प्रजातियां शामिल हैं। वैसे तो नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के नमूने का इस्तेमाल आम है, लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि सभी पक्षियों के फंक्शनल ट्रेट्स संबंधी व्यापक डाटा को लेकर शोध किया गया है।

जैव विविधता

  • जैविक विविधता शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग वन्यजीवन वैज्ञानिक और संरक्षणवादी रेमंड एफ. डैसमैन द्वारा 1968 ई. में ए डिफरेंट काइंड ऑफ कंट्री पुस्तक में किया गया था।
  • जैव विविधता जीवन और विविधता के संयोग से निर्मित शब्द है जो आम तौर पर पृथ्वी पर मौजूद जीवन की विविधता और परिवर्तनशीलता को संदर्भित करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (युएनईपी), के अनुसार जैवविविधता विशिष्टतया अनुवांशिक, प्रजाति, तथा पारिस्थितिकि तंत्र के विविधता का स्तर मापता है। जैव विविधता किसी जैविक तंत्र के स्वास्थ्य का द्योतक है।
  • पृथ्वी पर जीवन आज लाखों विशिष्ट जैविक प्रजातियों के रूप में उपस्थित हैं। जैव विविधता एक प्राकृतिक संसाधन है जिससे हमारी जीवन की सम्पूर्ण आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। सन् 2010 को जैव विविधता का अंतरराष्ट्रीय वर्ष, घोषित किया गया था।
  • जैवविविधता प्रायः प्रजाति विविधता और प्रजाति समृद्धता जैसे पदों के स्थान पर प्रयुक्त होती है। जीवविज्ञानी अक्सर जैवविविधता को किसी क्षेत्र में गुणसूत्र, प्रजाति तथा पारिस्थिकि की समग्रता के रूप में परिभाषित करते हैं।
  • जैव विविधता आमतौर पर एक भौगोलिक क्षेत्र का वर्गीकरण समृद्धि के रूप में, एक अस्थायी पैमाने पर करने के लिए कुछ सन्दर्भ के साथ प्रस्तुतीकरण है। व्हिटेकर जैव विविधता को मापने के लिए तीन आम मेट्रिक्स का इस्तेमाल करते हैं।
  1. प्रजातियों समृद्धि (Species richness)
  2. सिम्पसन सूचकांक (Simpson index)
  3. शान्नोन सूचकांक (Shannon index)
  • तीन अन्य सूचकांक भी है जिनका एकोलोगिस्ट्स द्वारा उपयोग किया जाता है-
  1. अल्फा विविधता (Alpha diversity): विविधता के लिए एक विशेष क्षेत्र, समुदाय या पारिस्थितिकी तंत्र के भीतर है और सन्दर्भित ने पारिस्थितिकी तंत्र (आमतौर पर प्रजातियों के भीतर) taxa की संख्या की गणना के द्वारा मापा जाता है।
  2. बीटा विविधता (Beta diversity): पारिस्थितिकी प्रणालियों के बीच प्रजाति विविधता है।
  3. गामा विविधता (Gamma diversity): विभिन्न पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए समग्र विविधता का एक उपाय का एक क्षेत्र भीतर है।

Source – down to earth

 

Nirman IAS (Surjeet Singh)

Current Affairs Author