देश में बाघों की स्थिति चिंताजनक नहीं
28 Jul, 2022
चर्चा में क्यों ?
बाघों की मौत पर उठ रहे सवालों के बीच वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने साफ किया है कि देश में बाघों की स्थिति कतई चिंताजनक नहीं है। देखा जाए तो उनकी संख्या हर साल औसतन छह प्रतिशत के हिसाब से बढ़ रही है। पिछले सालों में बाघों की जो मौतें हुई हैं, उनमें ज्यादातर स्वाभाविक ही हैं। वैसे भी बाघों की औसत उम्र 12 वर्ष होती है।
मुख्य बिंदु :-
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मंत्रालय ने कहा है कि देश में बाघों की मौत का ब्यौरा एनटीसीए (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथारिटी) की वेबसाइट पर सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। बाघों की सुरक्षा निगरानी बढ़ाने से शिकार की घटनाओं में भी कमी दर्ज आई है।
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संसद को दी गई रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2019 में शिकारियों ने 17 बाघों को निशाना बनाया था जबकि वर्ष 2021 में यह संख्या घटकर महज चार रह गई। एनटीसीए के अनुसार आने वाले दिनों में शिकारी घटनाएं पूरी तरह से थम जाएंगी।
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इस बीच चिंता की जो बड़ी बात है, वह मानव संघर्ष की बढ़ती घटनाएं हैं। इसके चलते बाघों और मनुष्यों दोनों को जान गंवानी पड़ रही है। वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार बाघ अभयारण्यों के बाहरी हिस्सों में और आबादी से नजदीक वाले क्षेत्र में इनके मूवमेंट पर नजर रखी जा रही है।
देश में करीब तीन हजार बाघ :
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वर्तमान में देश में बाघों की कुल संख्या करीब तीन हजार है। इनमें सबसे ज्यादा बाघ मध्य प्रदेश और कर्नाटक में हैं। देश में 2008 में बाघों की संख्या सिर्फ 1,400 और 2014 में करीब 2,200 थी।
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एक रिपोर्ट के अनुसार 2019 से 2021 के बीच 329 बाघों की मौत हुई है। इस दौरान 68 की मौत स्वाभाविक थी। 197 बाघों की मौत के कारण स्पष्ट नहीं थे और इसकी जांच चल रही है। वहीं, इन तीन सालों में करीब 30 बाघों की जान मानव के साथ हुए संघर्ष में गई है।
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देश में बाघों की सर्वाधिक संख्या वाले मध्य प्रदेश में अधिकारियों की लालफीताशाही और कुप्रबंधन से टाइगर रिजर्व में भी बाघ असुरक्षित हैं। प्रदेश के आधा दर्जन टाइगर रिजर्व में ढाई हजार से ज्यादा सुरक्षा श्रमिकों तैनात किए गए हैं पर, उन्हें सुरक्षा के लिए सिर्फ लाठी,टार्च और वायरलेस सेट दिए गए हैं।
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इस साल अब तक मध्य प्रदेश में 27 बाघों की मौत हो चुकी है। आश्चर्य की बात है कि ज्यादातर बाघों के शव घटना के 72 घंटे बाद मिले हैं। स्पष्ट है कि उनकी निगरानी भी ठीक से नहीं हो पा रही है। इसके बाद भी राज्य में स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स का गठन करीब 10 साल से लंबित है।
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इस साल हुई 27 बाघों की मौत में चार का शिकार हुआ था और तीन बाघों ने अपनी उम्र पूरी कर ली थी। दो बाघों की मौत अज्ञात कारणों से हुई है जबकि ज्यादातर ने आपसी संघर्ष में जान गंवा दी।
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संसाधन विहीन सुरक्षा श्रमिक सिर्फ निगरानी कर सकते हैं। जबकि स्पेशल टाइगर प्रोटेक्शन फोर्स के जवानों को शिकार पर प्रभावी नियंत्रण करने और बाघों के आपसी संघर्ष को भी कम करने का प्रशिक्षण दिया जाता है।
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वन्य प्राणी प्रेमी नरेंद्र बगड़िया का कहना है कि प्रदेश के वन अधिकारी अपने वर्चस्व को बचाए रखने के लिए बाघों के जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं। यह फोर्स केंद्र सरकार के फंड से बनेगी और उनके अधिकारियों के नियंत्रण में रहेगी।
Source – JS
Nirman IAS (Surjeet Singh)
Current Affairs Author