कम होती आद्रभूमियां
10 Feb, 2023
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में शोधकर्ताओं ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया की 34 लाख वर्ग किलोमीटर में फैली आद्रभूमियां बढ़ती इंसानी महत्वकांक्षा की भेंट चढ़ गए, भारत में भी आद्रभूमियो में कमी आई
मुख्य बिंदु :-
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इंसान की दिनों-दिन बढ़ती महत्वकांक्षा पर्यावरण के विनाश का सबसे बड़ा कारण है। इसी कड़ी में बढ़ते इंसानी जरूरतों ने पिछले तीन सदियों में 34 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले वेटलैण्ड्स यानी आद्रभूमियों को नष्ट कर दिया है।
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वेटलैंड्स को हुआ यह नुकसान कितना बड़ा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि नष्ट हुए वेटलैंड्स का कुल क्षेत्रफल भारत के क्षेत्रफल से भी ज्यादा है। यह जानकारी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों द्वारा किए नए अध्ययन में सामने आई है।
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शोधकर्ताओं के मुताबिक यदि 1700 से 2020 के बीच देखें तो करीब 21 फीसदी वेटलैंड्स खत्म हो गए हैं जबकि इससे पहले किए अध्ययन में नुकसान का यह आंकड़ा 50 से 87 फीसदी के बीच आंका गया था।
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रिसर्च से पता चला है कि पिछले 320 वर्षों में यूरोप, अमेरिका और चीन में करीब आधे वेटलैंड्स खत्म हो गए हैं, जबकि भारत, यूके, आयरलैंड और जर्मनी के कुछ हिस्सों में 75 फीसदी से अधिक का नुकसान हुआ है।
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देखा जाए तो यूरोप इससे सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है। गौरतलब है कि जहां आयरलैंड ने अपनी आर्द्रभूमि का करीब 90 फीसदी हिस्सा खो दिया है। वहीं जर्मनी, लिथुआनिया और हंगरी के लिए नुकसान का यह आंकड़ा 80 फीसदी से ज्यादा दर्ज किया गया है। इसी तरह नीदरलैंड और इटली में भी 75 फीसदी से ज्यादा नुकसान हुआ है।
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हालांकि शोधकर्ताओं का कहना है कि कुछ क्षेत्रों के बहुत बुरी तरह प्रभावित होने के बावजूद, दुनिया भर में वेटलैंड्स के मामले में बचाने के लिए अभी बहुत कुछ बचा है।
तेजी से गायब हो रही हैं आद्रभूमियां
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संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह वेटलैंड अभी भी दुनिया में 1.21 करोड़ वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हैं, जो क्षेत्रफल के मामले में ग्रीनलैंड से भी ज्यादा है। वहीं इनका 13 से 18 फीसदी हिस्सा अंतर्राष्ट्रीय महत्व के वेटलैंड्स के रूप में रामसर सूची में शामिल है, जो संरक्षित क्षेत्र हैं।
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गौरतलब है कि यह पहला मौका है जब शोधकर्ताओं ने दुनिया भर के 154 देशों में ऐतिहासिक रिकॉर्डों की छानबीन की है, जिसमें उन्होंने 1700 के बाद से उन्होंने उन क्षेत्रों की पहचान की है जहां आर्द्रभूमि से जल निकासी और भूमि उपयोग में बदलाव के जरिए इनमें बदलाव किए गए हैं। इन्हें उन्होंने वर्तमान में वेटलैंड्स के मानचित्रों के साथ जोड़कर सटीक नक्शों का निर्माण किया है।
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गौरतलब है कि पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन में रोकथाम, भूजल के पुनर्भरण, कार्बन भंडारण, पानी को साफ करने और जैवविविधता को बचाने में मददगार होने के बावजूद इन आद्रभूमियों को लम्बे समय तक अनुत्पादक क्षेत्रों के रूप में देखा जाता था, जो केवल बीमारियों और कीड़ों से भरे थे।
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हालांकि मान्यता यह थी कि यह केवल फसलों को उगाने या ईंधन और उर्वरक के लिए पीट को उगाने का साधन थे। यही वजह है कि लम्बे समय से इन्हें नष्ट किया जाता रहा है।
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रिसर्च के मुताबिक इन वेटलैंड्स को हुए 60 फीसदी से ज्यादा नुकसान के लिए ऊंची जमीनों से पानी को निकाला जाना है जिससे उसपर खेती की जा सके। इसके बाद धान की खेती 18 फीसदी नुकसान के लिए जिम्मेवार है, जबकि शहरी क्षेत्रों के विस्तार की इसमें आठ फीसदी की हिस्सेदारी है। वहीं नुकसान में पीट की भूमिका एक फीसदी से भी कम है।
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पता चला है कि 50 के दशक में इन आद्रभूमियों को होने वाले विनाश की दर सबसे ज्यादा थी। जब कृषि और वानिकी की भूमि सम्बन्धी जरूरतों को पूरा करने के लिए उत्तरी अमेरिका, यूरोप और चीन में किसानों को सरकारी सब्सिडी दी जाती थी। स्पेन एकमात्र ऐसा यूरोपीय देश है, जिसकी 50 फीसदी से भी ज्यादा आर्द्रभूमि अभी भी बरकरार है।
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देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर वन क्षेत्रों की तुलना में पीटलैंड दोगुना कार्बन जमा करते हैं। अनुमान है कि यह जंगलों की तुलना में यह आद्रभूमियां, तीन गुना तेजी से गायब हो रही हैं। ऐसे में यदि जलवायु लक्ष्यों को हासिल करना है तो इसे हासिल करने के लिए यह वेटलैंड्स महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्र हैं।
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इसी तरह यह आद्रभूमियां, जैव विविधता के दृष्टिकोण से भी काफी मायने रखती हैं। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक दुनिया की करीब 40 फीसदी प्रजातियां इन्हें वेटलैंड्स में रहती और प्रजनन करती हैं। हालांकि इसके बावजूद आद्रभूमियों में मिलें वाली 25 फीसदी से अधिक पौधों और जानवरों पर विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है।
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यह वेटलैंड पानी को साफ करते हैं, बाढ़ से बचाते हैं और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य सुरक्षा में योगदान देते हैं। ऐसे में इससे पहले बहुत देर हो जाए यह बहुत जरूरी है कि वैश्विक स्तर पर इन आद्रभूमियों को बचाने के प्रयास किए जाए। इसमें स्थानीय लोगों की भूमिका भी बहुत महत्वपूर्ण है।
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साथ ही शोध के अनुसार नुकसान में भौगोलिक असमानताओं पर भी विचार करना जरूरी है क्योंकि जल निकासी के बाद नष्ट हुई आर्द्रभूमि से स्थानीय पैमाने पर जो प्रभाव पड़ता है उसकी भरपाई कही और मौजूद आर्द्रभूमि से नहीं की जा सकती।
क्या है आर्द्रभूमि ?
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आर्द्रभूमि (wetland) ऐसा भूभाग होता है जहाँ के पारितंत्र का बड़ा हिस्सा स्थाई रूप से या प्रतिवर्ष किसी मौसम में जल से संतृप्त (सचुरेटेड) हो या उसमें डूबा रहे।
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ऐसे क्षेत्रों में जलीय पौधों का बाहुल्य रहता है और यही आर्द्रभूमियों को परिभाषित करता है।
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जैवविविधता की दृष्टि से आर्द्रभूमियाँ अंत्यंत संवेदनशील होती हैं क्योंकि विशेष प्रकार की वनस्पति व अन्य जीव ही आर्द्रभूमि पर उगने और फलने-फूलने के लिये अनुकूलित होते है।
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ईरान के रामसर शहर में 1971 में पारित एक अभिसमय (convention) के अनुसार आर्द्रभूमि ऐसा स्थान है जहाँ वर्ष में आठ माह पानी भरा रहता है।
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रामसर अभिसमय के अन्तर्गत वैश्विक स्तर पर वर्तमान में कुल 1929 से अधिक आर्द्रभूमियाँ हैं।
Source – Down to Earth
Nirman IAS (Surjeet Singh)
Current Affairs Author