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दलहनी फसलों में आयात निर्भरता

26 Mar, 2022

चर्चा में क्यों ?

चालू फसल वर्ष 2021-22 में दलहनी फसलों की पैदावार रिकार्ड 2.70 करोड़ टन होने का अनुमान व्यक्त किया गया है। हालांकि दालों की घरेलू खपत में भी उससे कहीं तेजी से वृद्धि होने का अनुमान है।

मुख्य बिंदु :-

  • दलहनी फसलों की पैदावार में साल दर साल वृद्धि के बावजूद दालों की मांग बढ़ने से आयात निर्भरता खत्म नहीं हो पा रही है। दालों की महंगाई पर नियंत्रण बनाए रखने के लिए सरकार ने चाकचौबंद बंदोबस्त कर रखा है। इसी के मद्देनजर चालू सीजन में 24 लाख टन से अधिक दालों के आयात का प्रस्ताव है।
  • दलहनी फसलों की कृषि हेतु कई तरह के प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है। वर्ष 2016-17 में जहां दलहनी फसलों की उत्पादकता 786 किग्रा प्रति हेक्टेयर थी वह वर्ष 2021-22 में बढ़कर 888 किग्रा प्रति हेक्टेयर पहुंच गई है।
  • वर्ष 2021-22 में कुल 2.70 करोड़ टन दालों का उत्पादन होगा। वर्ष 2030 तक दालों की पैदावार बढ़ाने के लिए किसानों को उन्नत किस्म के बीजों की आपूर्ति के साथ, फर्टिलाइजर समेत उपज की उचित व लाभकारी मूल्य पर खरीद भी सुनिश्चित की गई है।

दालों का आयात

  • वर्ष 2021-22 में कुल 24.50 लाख टन दालों का आयात करना पड़ सकता है। जिसमें सर्वाधिक आठ लाख टन अरहर दाल होगी। मसूर का उत्पादन घरेलू खपत के मुकाबले कम होता है, जिसके लिए सात लाख टन आयात करना पड़ सकता है।
  • जबकि साढ़े पांच लाख टन उड़द दाल विदेश से मंगानी पड़ सकती है। मंडियों में दालों का मूल्य एमएसपी से अधिक बोला जा रहा है। फलस्वरूप बफर स्टाक के लिए सरकारी खरीद एक तरह से रुकी हुई है।
  • दालों के उत्पादन और उपभोग में भारत का प्रथम स्थान है। भारत में दलहनी फसलों के उत्पादन में प्रथम स्थान होने के बावजूद कृषि उत्पादों में दालों का सर्वाधिक आयात होता है, क्योंकि शाकाहारी जनसंख्या की प्रोटीन प्राप्ति का प्रमुख साधन दालें ही हैं।
  • दलहनी फसलों में सबसे ज्यादा प्रोटीन लगभग 40% सोयाबीनमें पाया जाता है। विश्व में सोयाबीन का सर्वाधिक उत्पादक देश संयुक्त राज्य अमेरिका और दूसरे स्थान पर ब्राजील है। भारत में दलहनी फसलों में सर्वाधिक उत्पादन सोयाबीन का ही होता है।
  • समग्र दलहन उत्पादन में मध्य प्रदेश का प्रथम स्थान है। भारत में सोयाबीन का सर्वाधिक उत्पादन मध्य प्रदेश राज्य में होता है । इसलिए मध्य प्रदेश को सोया प्रदेश भी कहते हैं। देश में चना उत्पादन में मध्य प्रदेश सर्वोच्च स्थान पर है। देश में अरहर का सर्वाधिक उत्पादन महाराष्ट्र राज्य में जबकि मसूर के उत्पादन में उत्तर प्रदेश का प्रथम स्थान है।

दलहनी फसलें

  • दलहनी फसलों के अन्तर्गत अरहर,चना,मटर,मसूर और सोयाबीन आदि को शामिल किया जाता है ।ये सभी लेग्यूमिनेसी कुल की फसलें हैं। लेग्यूमिनेसी कुल की प्रमुख विशेषता यह होती है कि इनकी फसलों की जड़ों में ग्रंथियाँ पायी जाती हैं, जिनमें राइजोबियम नामक जीवाणु सहजीवन करता है।
  • राइजोबियम नामक जीवाणु वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का मिट्टी में स्थिरीकरण करके मिट्टी को नाइट्रेट की आपूर्ति करता है। इस प्रकार मिट्टी में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ाकर दलहनी फसलें मिट्टी की उर्वरता को बढ़ाती हैं। यही कारण है कि दलहनी फसलों में यूरियाया नाइट्रेट का प्रयोग अलग से नहीं करना पड़ता है।
  • जहाँ अन्य फसलें बुआई के बाद मिट्टी की पोषकता को कम कर देती हैं वहीं दलहनी फसलों की बुआई के बाद ये मिट्टी की गुणवत्ता को बनाये रखती हैं। दलहनी फसलों को फसल चक्र में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जाता है ।
  • फसल चक्र का उद्देश्य होता है, मिट्टी की उर्वरता को बनाये रखना अर्थात् मिट्टी की पोषकता को बनाये रखना। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि फसल चक्र का कार्य मिट्टी की खोई हुई पोषण मान को वापस करना होता है।
  • एक खाद्यान्न फसल को लगाने के बाद जब काटते हैं तो खाद्यान्न फसल मिट्टी के पोषण मान को खींच लेती है, जिससे मिट्टी की उर्वरता घट जाती है। एक खाद्यान्न लगाने के तुरन्त बाद अगर दूसरी खाद्यान्न फसल लगा दिया जाये तो मिट्टी में पोषण मान को बनाए रखने के लिए रासायनिक उर्वरक का प्रयोग करना पड़ता है। रासायनिक उर्वरक का प्रयोग वायुमंडल को हानि पहुँचाता है ।
  • प्राकृतिक रूप से मिट्टी की उर्वरकता को बनाये रखने के लिए दलहनी फसलों को लगाया जाता है। खाद्यान्न फसल लगाने के बाद दलहन फसल लगाने से उत्पादन तो होता ही है साथ ही साथ पोषण मान भी मिट्टी को प्राप्त हो जाता है।
  • खरीफ की फसल काटने के बाद तथा रबी की फसल को बोने से पहले दलहनी फसलों को बोया जाता है। दलहनी फसलें मिट्टी में नाइट्रेट की आपूर्ति करके मिट्टी की उर्वरक क्षमता को बढ़ा देती हैं।

प्रमुख दलहन फसलें

  • अरहर, चना, मटर और मसूर आदि फसलें रबी फसल ऋतु की प्रमुख दलहनी फसलें हैं। सोयाबीन, मूंग, उरद्द और लोबिया आदि फसलें खरीफ फसल ऋतु की प्रमुख दलहनी फसलें हैं।
  • जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा होती है, वहाँ सोयाबीन, मूंग, और उड़द जायद फसल ऋतु में भी उगाया जाता है। इस प्रकार कहा जा सकता है की दलहनी फसलों की कृषि तीनों फसल ऋतुओं में की जा सकती है ।

दलहन की महत्वपूर्ण प्रजाति

  • अपर्णा मटर की पत्ती विहीन प्रजाति जबकि सम्राट चने की आशा अरहर की एवं गरिमा मसूर की लोकप्रिय प्रजाति है।

Source – The Hindu

 

Nirman IAS (Surjeet Singh)

Current Affairs Author