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वैश्विक बाजार में भारतीय गेहूं की मांग

18 Apr, 2022

चर्चा में क्यों ?

वैश्विक बाजार में भारतीय गेहूं की मांग तेजी से बढ़ी है, जिसका फायदा घरेलू अनाज मंडियों में दिखने लगा है। चालू सीजन का 10 लाख टन का पहला बड़ा निर्यात सौदा मिस्र से हुआ है।

मुख्य बिंदु:-

  • यूक्रेन-रूस युद्ध से वैश्विक स्तर पर खाद्य संकट पैदा होने की संभावित समस्या से निपटने के लिए भारत दुनियाभर को कई तरह के सुझाव देने वाला है। ये सुझाव अगले सप्ताह विश्व बैंक व अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) की तरफ से विभिन्न देशों की बुलाई गई बैठक में दिए जाएंगे।
  • यूक्रेन-रूस युद्ध के बाद इन अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की यह पहली बैठक है जिसमें कोरोना काल के बाद ग्लोबल रिकवरी के बीच यूक्रेन-रूस युद्ध के असर की व्यापक समीक्षा की जाएगी।
  • वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और वित्त मंत्रालय में प्रमुख आर्थिक सलाहकार वी. अनंत नागेश्वरन के इसमें हिस्सा लेने की संभावना है। बैठक फिजिकल व वर्चुअल दोनों माध्यमों में होनी है।

भविष्य में कुछ खाद्यान्नों की कमी की आशंका

  • रूस पर अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों और यूक्रेन में गेहूं व कई तरह के दूसरे खाद्यान्नों के उत्पादन पर असर के चलते निकट भविष्य में कुछ खाद्यान्नों की कमी की आशंका जताई जा रही है।
  • पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के बीच हुई वर्चुअल बैठक में भी इस आशंका से जुड़े विषय पर बातचीत हुई थी। भारत चाहता है कि इस आशंका को देखते हुए खाद्यान्नों के अंतरराष्ट्रीय कारोबार पर विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की तरफ से लागू कई तरह के प्रतिबंधों में ढिलाई दी जानी चाहिए।
  • हाल के महीनों में भारत से गेहूं व दूसरे खाद्यान्नों का निर्यात बढ़ा है। डब्ल्यूटीओ की तरफ से चुनिंदा प्रतिबंधों में ढील से इस निर्यात में बड़ी बढ़ोतरी हो सकती है।
  • विश्व बैंक और आइएमएफ का मंच बड़ा अवसर होगा कि भारत इन मद्दों को सामने लाए। इसके अलावा भारत यह भी चाहता है कि क्रिप्टोकरेंसी पर नियमन को लेकर वैश्विक समुदाय की राय एक हो। प्रधानमंत्री पूर्व में कुछ अंतरराष्ट्रीय मंचों से इसका सुझाव दे चुके हैं।

मिस द्वारा भारत को गेहूं आपूर्तिकर्ता के रूप में मंजूरी

  • भारतीय एजेंसियां खाद्यान्न निर्यात के रास्ते बाधाएं दूर करने में जुट गई हैं। इस सीजन में एक करोड़ टन से अधिक गेहूं निर्यात का अनुमान लगाया जा रहा है। इस लक्ष्य को पूरा करने के लिए निजी कंपनियां अनाज मंडियों में सक्रिय हो गई हैं।
  • केंद्रीय वाणिज्य व उपभोक्ता व खाद्य मंत्री द्वारा गेहूं निर्यात को लेकर कहा गया है कि मिस्र ने भारत को गेहूं आपूर्तिकर्ता के रूप में मंजूरी दे दी है। इसी क्रम में पहला निर्यात सौदा दस लाख टन का हो चुका है।
  • भारत ने चालू वित्त वर्ष में मिस्र को 30 लाख टन गेहूं निर्यात का लक्ष्य रखा है। । यूक्रेन और रूस से गेहूं का सबसे बड़ा आयातक मिस्र ही है। दोनों देशों में चल रहे युद्ध के चलते वैश्विक बाजार में गेहूं की बड़ी कमी हुई है।
  • 2020 के दौरान मिस्र ने रूस से 180 करोड़ डालर यानी 13,500 करोड़ रुपये मूल्य से अधिक और यूक्रेन से 61 करोड़ डालर यानी लगभग 4,575 करोड़ रुपये से अधिक का गेहूं आयात किया था। चालू सीजन में अफ्रीकी देश भारत से 10 लाख टन गेहूं आयात करने की तैयारी में हैं।

भारत गेहूं का ग्लोबल सप्लायर बन सकता है

  • भारत गेहूं का ग्लोबल सप्लायर बन सकता है, जिसके लिए वह तैयार है। गेहूं के प्रमुख आपूर्तिकर्ता रूस और यूक्रेन के विश्वस्त विकल्प के रूप में भारत उभर रहा है।
  • 2021-22 के अप्रैल से जनवरी के बीच भारत ने 174 करोड़ डालर मल्य का निर्यात किया था. जो पिछले वर्ष की इसी अवधि के 34 करोड़ डालर से कुछ अधिक के मुकाबले कई गुना ज्यादा है।
  • वर्त्तमान में भारतीय गेहूं का सबसे बड़ा आयातक पड़ोसी देश बांग्लादेश रहा है, जिसने वित्त वर्ष 2020-21 में भारत के कुल गेहूं निर्यात का 54 प्रतिशत खरीदा था। भारत अब नए बाजार में प्रवेश कर चुका है जिनमें मिस्र, यमन, अफगानिस्तान, कतर और इंडोनेशिया प्रमुख हैं।

भारत से सर्वाधिक गेहूं आयात करने वाले 10 देश

  • वर्ष 2020-21 में भारत से सर्वाधिक गेहूं आयात करने वाले 10 देशों में बांग्लादेश, नेपाल, यूएई, श्रीलंका, यमन, अफगानिस्तान, कतर, इंडोनेशिया, ओमान और मलेशिया प्रमुख हैं।
  • विश्व के गेहूं निर्यातक देशों में भारत की हिस्सेदारी फिलहाल मात्र एक प्रतिशत है, जबकि भारत दुनिया में दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। 2020 में गेहूं उत्पादन में भारत की कुल हिस्सेदारी 14.14 प्रतिशत रही थी।

देश में गेहूं सहित खाद्यान्नों के रिकार्ड उत्पादन का परिदृश्य

  • देश के गेहूं उत्पादक राज्यों में
  • उत्तर प्रदेश,
  • पंजाब,
  • हरियाणा,
  • मप्र,
  • राजस्थान,
  • बिहार व  
  • गुजरात प्रमुख हैं।
  • देश में गेहूं सहित खाद्यान्नों के रिकार्ड उत्पादन का परिदृश्य दिखाई दे रहा है। यह आम आदमी और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा सहारा बन गया है।
  • खाद्य मंत्रालय के खाद्यान्न उत्पादन के दूसरे अग्रिम अनुमान के अनुसार, फसल वर्ष 2021-22 में देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन रिकार्ड 31.60 करोड़ टन पर पहुंच जाने का अनुमान है, जो पिछले फसल वर्ष में 31.07 करोड़ टन रहा था।
  • इस वर्ष गेहूं का उत्पादन रिकार्ड 11.13 करोड़ टन रहने का अनुमान है, जो कि पिछले वर्ष 10.95 करोड़ टन रहा था। वित्त वर्ष 2021-22 के दौरान चावल का कुल उत्पादन 12.79 करोड़ टन रिकार्ड अनुमानित है।
  • साथ ही इस साल तिलहन उत्पादन 3.71 करोड़ टन रह सकता है, जो कि पिछले साल के 3.59 करोड़ टन से ज्यादा है।

खाद्यान्न प्रचुरता के दोहरे लाभ

  • भारत पूरी दुनिया को खाद्यान्न उपलब्ध करा सकता है। इस कथन का सीधा अर्थ है कि भारत में पर्याप्त मात्रा में खाद्यान्न है। देश में खाद्यान्न प्रचुरता के कारण दो हितकारी बातें दिखाई दे रही हैं।
  • पहली, सरकार के मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम के कारण न सिर्फ कोविड महामारी की वजह से लगाए गए लाकडाउन की मार से गरीबों को बचाया जा सका, बल्कि इस समय दुनिया की तुलना में देश में महंगाई भी कम है।
  • दूसरी, रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच भारत ने वैश्विक खाद्यान्न जरूरतों की पूर्ति के मद्देनजर गेहं निर्यात का अभूतपूर्व मौका भुनाने का बीड़ा उठाया है।
  • कृषि मंत्री के अनुसार किसानों को दी जा रही-
  • पीएम सम्मान निधि,
  • विभिन्न कृषि योजनाओं के सफल क्रियान्वयन और
  • किसानों के परिश्रम से खाद्यान्न उत्पादन वर्ष-प्रतिवर्ष रिकार्ड ऊंचाई बनाते हुए दिखाई दे रहा है।

खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम गरीब वर्ग को सहारा

  • इसमें कोई दो मत नहीं है कि देश में खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम गरीब वर्ग को सहारा देते हुए दिखाई दे रहा है। हाल में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) के एक कार्य पत्र में कहा गया है कि सरकार की प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना (पीएमजीकेएवाई) के तहत मुफ्त खाद्यान्न कार्यक्रम ने लाकडाउन के प्रभावों की गरीबों पर मार को कम करने में अहम भूमिका निभाई है।
  • गौरतलब है कि कोरोना महामारी शुरू होने के बाद मोदी सरकार ने अप्रैल, 2020 में गरीबों को मुफ्त राशन देने के लिए पीएमजीकेएवाई की शुरुआत की थी। इसके तहत लाभार्थी को उसके सामान्य कोटे के अलावा प्रति व्यक्ति पांच किलो मुफ्त राशन दिया जाता है।
  • अप्रैल, 2020 से लेकर इस साल मार्च तक सरकार इस पर 2.60 लाख करोड़ रुपये खर्च कर चुकी है। इस साल अप्रैल से सितंबर तक 80 करोड़ लोगों को मुफ्त में राशन देने से सरकार पर 80 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ आएगा।
  • इस प्रकार खाद्य सुरक्षा से जुड़ी दुनिया की सबसे बड़ी योजना पर सरकार इस साल सितंबर तक 3.40 लाख करोड़ रुपये खर्च कर देगी। खास बात है कि एक राष्ट्र, एक राशन कार्ड स्कीम के तहत कोई भी व्यक्ति देश के किसी कोने में इस योजना का लाभ ले सकता है।

वैश्विक स्तर पर भी जरूरतमंद देशों को खाद्यान्न की आपूर्ति में अहम भूमिका

  • यदि कोरोना काल में सरकार के ऐसे सफल अभियान नहीं होते तो देश में बहुआयामी गरीबी और बढ़ी हई दिखाई देती। कोविङ-19 से जुड़ी आपदाओं के बीच भारत ने वैश्विक स्तर पर भी जरूरतमंद देशों को खाद्यान्न की आपूर्ति में अहम भूमिका निभाई है।
  • इनमें अफगानिस्तान और श्रीलंका प्रमुख हैं। यह भी स्पष्ट दिखाई दे रहा है कि रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते कई जरूरतमंद देशों से भारत के गेहूं सहित अन्य खाद्यान्नों की मांग बढ़ गई है।
  • रूस और यूक्रेन मिलकर वैश्विक गेहं आपर्ति के करीब एक चौथाई हिस्से का निर्यात करते हैं, लेकिन युद्ध के चलते इन देशों से गेहूं की वैश्विक आपूर्ति रुक गई है। ऐसे में 24 फरवरी के बाद भारत से गेहूं निर्यात में तेज इजाफा हुआ है।
  • स्थिति यह भी है कि अफ्रीका, पश्चिम एशिया और दक्षिण पूर्वी एशिया के अधिकांश देश अपनी जरूरत के लिए भारत से गेहूं की मांग करने लगे हैं। ऐसे में रूस और यूक्रेन की अनुपस्थिति की भरपाई भारत काफी हद तक कर रहा है।

गेहूं की आपूर्ति करने का भौगोलिक लाभ भी हासिल

  • इस समय भारत ही एकमात्र देश है, जिसके पास बड़ी मात्रा में अधिशेष गेहूं भंडार है। आसान उपलब्धता के अलावा भारत को इन देशों को गेहूं की आपूर्ति करने का भौगोलिक लाभ भी हासिल है।
  • उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और मध्य प्रदेश आदि लगातार निर्यात बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतें घरेलू बाजार से काफी अधिक हैं। ऐसे में निर्यातक किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की तुलना में ऊंचे दाम पर गेहं खरीद रहे हैं।
  • सरकार एमएसपी पर खरीद करती है। चूंकि घरेलू गेहूं उत्पादन में भी कोई कमी आने के आसार नहीं दिख रहे है। ऐसी स्थिति ने गेहूं और धान को लाभप्रद वाणिज्यिक फसल बना दिया है, जिस पर उत्पादकों को तयशुदा अच्छी कीमत मिल रही है।

यूक्रेन संकट के बीच देश में खाद्यान्न प्रचुरता

  • यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत से वित्तीय वर्ष 2021-22 में लक्ष्य से भी अधिक 75 लाख टन से अधिक गेहूं का निर्यात हो चुका है। यह वित्तीय वर्ष 2022-23 में दोगुने से अधिक के रिकार्ड स्तर को छू सकता है।
  • उम्मीद है कि यूक्रेन संकट के बीच देश में खाद्यान्न प्रचुरता के कारण पीएमजीकेएवाई के तहत इस साल अप्रैल से सितंबर तक 80 करोड़ गरीब लोगों को मुफ्त में राशन देने से उन्हें महंगाई से राहत मिलेगी। साथ ही भारत दुनिया में विश्वसनीय अन्न निर्यातक देश के रूप में उभरता हआ दिखाई देगा।

निजी कंपनियों के बीच गेहूं खरीदने की होड़ का लाभ भी किसानों को

  • एक अनुमान है कि इस वर्ष भारत एक करोड़ टन गेहूं निर्यात कर सकता है। निःसंदेह इसका एक प्रमुख कारण रूस का यूक्रेन पर हमला है। महत्वपूर्ण केवल यह नहीं है कि यूक्रेन संकट के कारण दुनिया भर में भारतीय गेहूं की मांग बढ़ रही है, बल्कि यह भी है कि हमारे किसान निजी कंपनियों को गेहूं बेचना पसंद कर रहे हैं।
  • इसकी वजह यह है कि निजी कंपनियां उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य से अधिक दाम दे रही हैं। किसान निजी कंपनियों को गेहूं बेचना इसलिए भी पसंद कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें उस असुविधा का सामना नहीं करना पड़ रहा, जिसे आम तौर पर सरकारी मंडियो में करना पड़ता है।

कृषि कानूनों की वापसी से छोटे और मझोले को नुकसान

  • पंजाब और हरियाणा में तो निजी कंपनियों के बीच गेहूं खरीदने की होड़ का लाभ भी किसानों को मिल रहा है। इस स्थिति पर न केवल किसान नेताओं को गौर करना चाहिए, बल्कि उन राजनीतिक दलों एवं संगठनों को भी, जिन्होंने कृषि कानूनों के खिलाफ माहौल बनाया और किसानों को गुमराह कर उन्हें धरनाप्रदर्शन के लिए उकसाया।
  • कम से कम अब तो उन्हें यह समझ आना चाहिए कि कृषि कानून किसानों के भले के लिए थे और उनका अंध विरोध करके कुल मिलाकर किसानों का अहित ही किया गया। यदि कृषि कानून वापस नहीं लिए गए होते तो शायद आज किसान कहीं बेहतर स्थिति में होते।
  • किसी को इसकी अनदेखी भी नहीं करनी चाहिए कि भारत सरकार तीनों कृषि कानूनों की विसंगतियों को दूर करने के लिए तैयार थी। सरकार के इस नरम रुख के बाद भी किसान नेता इस जिद पर अड़े रहे कि इन कानूनों की वापसी से कम कुछ मंजूर नहीं।
  • विपक्षी दलों ने किसान नेताओं को समझाने-बुझाने और बीच का रास्ता तलाशने के बजाय उनके अड़ियल रवैये का समर्थन करना पसंद किया। यह समर्थन इस हद तक किया गया कि किसान संगठनों की ओर से रास्ते रोकने को भी जायज ठहरा दिया गया।
  • चूंकि इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने हस्तक्षेप करने से इन्कार किया, इसलिए किसान नेताओं को यही संदेश गया कि वे जो कुछ कर रहे हैं, वह सही है। इसी के चलते ऐसी स्थिति बनी कि सरकार को कृषि कानून वापस लेने को विवश होना पड़ा।
  • कृषि कानूनों की वापसी से भले ही बड़े किसानों पर कोई असर न पड़ा हो, क्योंकि वे तो पहले से ही न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अन्न की सरकारी खरीद का लाभ उठा रहे थे, लेकिन इसमें दो राय नहीं कि इससे छोटे और मझोले को नुकसान उठाना पड़ा।

Source: economics times

 

Nirman IAS (Surjeet Singh)

Current Affairs Author