Daily News

आक्रामक विदेशी प्रजातियां और जैव विविधता

27 Apr, 2022

चर्चा में क्यों?

  • हाल ही में केरल वन विभाग द्वारा, आक्रामक प्रजातियों के पेड़ों को उखाड़ने, इन वृक्षों के चारो ओर खाई बनाने, काटने, पेड़ की शाखाओं को काटने और यहां तक ​​​​कि रसायनों के प्रयोग का परीक्षण करके, इन आक्रामक प्रजातियों को नष्ट करने का प्रयास किया जा रहा है।

मुख्य बिंदु:-

  • हालाँकि, ये सभी प्रयास व्यर्थ हो रहे है क्योंकि नष्ट होने के बजाय, प्रत्येक कटे हुए वृक्षों के तनों से कई शाखाएं निकलने लगी। कर्नाटक और तमिलनाडु में भी यही स्थिति है।
  • सेन्ना स्पेक्टबिलिस (Senna Spectabilis), ज्यादातर ‘नीलगिरि बायोस्फीयर रिजर्व’ (NBR) के वन क्षेत्रों में पाई जाने वाली एक आक्रामक प्रजाति (Invasive Species) का पौधा है।
  • इन आक्रामक पौधों के बड़े पैमाने पर हो रहे विकास को रोकने के लिए प्रभावी कदमों की कमी, पश्चिमी घाट के वन्यजीव आवासों के संरक्षण के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
  • यह आक्रामक प्रजातियां अब पश्चिमी घाट के सबसे प्रमुख वन्यजीव आवासों में फैल गई हैं और देशी वनस्पतियों को हटाते हुए हाथियों, हिरणों, गौर और बाघों के आवासों को नष्ट कर रही हैं।

ऐलेलोपैथिक लक्षण

  • इस प्रजाति के ‘ऐलेलोपैथिक लक्षण’ (Allelopathic Traits), इस पौधों के तहत अन्य पौधों को बढ़ने -पनपने से रोक देते हैं।
  • एलेलोपैथी (Allelopathy) एक जैविक घटना होती है, जिसके द्वारा कोई जीवधारी एक या एक से अधिक जैव रसायन उत्पन्न करता है, जो अन्य जीवों के अंकुरण, विकास, अस्तित्व और प्रजनन को प्रभावित करता है।
  • एलेलोपैथी, जमीनी स्तर पर प्राथमिक उत्पादकता को अत्यधिक प्रभावित करती है। जिन क्षेत्रों में ये आक्रामक प्रजातियां पायी जाती हैं, उनके नीचे जंगलों की सतह लगभग नग्न हो जाती है।
  • घास और जड़ी-बूटियाँ पूरी तरह से नष्ट हो जाती हैं और शाकाहारी जीवों को अपना भोजन नहीं मिल पाता है। वन्य जीवों के भरण-पोषण हेतु जंगलों की वहन क्षमता इन आक्रमक प्रजातियों की वजह से काफी कम हो रही है, जिससे ‘मानव-पशु संघर्ष’ और तीव्र होता जा रहा है।

आक्रामक प्रजातियां

  • ‘आक्रामक विदेशी प्रजातियों’ (Invasive alien species – IAS) में वे पौधे, जानवर, रोगजनक और अन्य जीव शामिल होते हैं, जो एक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए गैर-स्थानिक होते हैं, तथा आर्थिक या पर्यावरणीय नुकसान पहुंचा सकते हैं या मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
  • विशेष रूप से, ‘आक्रामक विदेशी प्रजातियां’ जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं, जिसके तहत – प्रतिस्पर्धा, शिकार, या रोगजनकों के संचरण के माध्यम से – देशी प्रजातियों की कमी या उन्मूलन हो जाता है, और स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र और पारिस्थितिकी तंत्र के कार्यों में व्यवधान उपस्थित हो जाता है।

‘आक्रामक प्रजातियों’ के प्रभाव

  • जैव विविधता में कमी।
  • प्रमुख प्राकृतिक संसाधनों की उपलब्धता और गुणवत्ता में कमी।
  • पानी की कमी।
  • जंगल की आग और बाढ़ की आवृत्ति में वृद्धि।
  • संक्रमणों को नियंत्रित करने के लिए रसायनों के अति प्रयोग से होने वाला प्रदूषण।

इस संबंध में किए गए प्रयास

  • जैव विविधता अभिसमय (CBD) के अनुसार, ‘आक्रामक प्रजातियों’ के प्रभाव का समाधान करने की तत्काल आवश्यकता है।
  • आइची जैव विविधता लक्ष्य संख्या 9 (Aichi Biodiversity Targets 9) और ‘संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य संख्या 15’ के एक अनुच्छेद ‘स्थल पर जीवन’ में विशेष रूप से इस मुद्दे को संबोधित किया गया है।
  • ‘आईयूसीएन एसएससी इनवेसिव स्पीशीज स्पेशलिस्ट ग्रुप’ (ISSG) का उद्देश्य ‘आक्रामक विदेशी प्रजातियों’ (Invasive alien species – IAS) को रोकने, नियंत्रित करने या मिटाने के तरीकों के बारे में जागरूकता बढ़ाकर पारिस्थितिक तंत्र और उसकी मूल प्रजातियों के लिए खतरों को कम करना है।
  • इसके लिए IUCN द्वारा ‘ग्लोबल इनवेसिव स्पीशीज़ डेटाबेस’ (GISD) और ‘ग्लोबल रजिस्टर ऑफ़ इंट्रोड्यूस्ड एंड इनवेसिव स्पीशीज़’ (GRIIS) नामक ‘जानकारी मंच’ विकसित किए गए हैं।

Source: The Hindu

 

Nirman IAS (Surjeet Singh)

Current Affairs Author