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लैवेंडर की खेती

14 Nov, 2022

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने कहा है कि जम्मू कश्मीर के डोडा जिले में किसान व्यावसायिक स्तर पर लैवेंडर की खेती कर रहे हैं। इससे अब जिले को लैवेंडर की खेती में एक आदर्श के रूप में पहचाना जाएगा।

मुख्य बिंदु :-

  • किसान ज्यादा मुनाफे की वजह से व्यावसायिक स्तर पर लैवेंडर की खेती कर रहे हैं, इसलिए डोडा जिले को लैवेंडर की खेती में रोल मॉडल के रूप में पहचान मिलेगी।
  • डोडा के दर्जनों पर्वतीय बस्तियों में 450 एकड़ से ज्याद जमान पर लगभग 400 किसान लैवेंडर की खेती कर रहे हैं। पिछले कुछ सालों के दौरान मक्का से लैवेंडर की ओर जाने के बाद उनकी आय चौगुनी हो गई।
  • लैवेंडर का पानी, जो लैवेंडर के तेल से अलग होता है, अगरबत्ती बनाने के लिए यूज किया जाता है। जबकि हाइड्रोसोल, जो फूलों से आसवन के बाद बनता है, साबुन और ‘रूम फ्रेशनर’ बनाने में यूज किया जाता है।
  • किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए आईआईआईएम-जम्मू से मदद मिलती है और कई कंपनियां, जो मोमबत्तियों और सुगंधित तेलों जैसे प्रोडक्ट्स को बनाती हैं, उनकी प्राथमिक खरीदार हैं।
  • सरकार का मिशन अगले तीन सालों के अंदर लैवेंडर की खेती को बढ़ाकर 1,500 हेक्टेयर करना है।

क्या है लैवेंडर?

  • यह एक बारहमासी फसल है और इसकी खेती बंजर भूमि पर भी की जा सकती है। इसे न्यूनतम सिंचाई की आवश्यकता होती है।
  • इसे दूसरी फसलों के साथ भी उगाया जा सकता है। लैवेंडर एक बार लगाने के बाद 10 से 12 साल तक रहता है।
  • गौरतलब है की लैवेंडर एक यूरोपियन क्रॉप है। पहले इसको कश्मीर में इंट्रोड्यूस किया गया। उसके बाद जम्मू के डोडा, किश्तवाड़ और भदरवा क्षेत्रों में लगाया।
  • इसका फायदा देखकर हजारों किसान आज लैवेंडर की खेती करना चाहते हैं।

लैवेंडर खेती के फायदे

  • CSIR-IIIM की ओर से अधिक तेल उत्पादन करने वाली एक किस्म, जिसे आरआरएल-12 के रूप में जाना जाता है, विकसित की गई थी।
  • फसल की बड़े पैमाने पर खेती के लिए संस्थान बहुत सी राज्य और केंद्र प्रायोजित मिशन आधारित परियोजनाएं जैसे CSIR-अरोमा मिशन को संचालित कर रहा है।
  • यह भी बताया गया कि लैवेंडर की खेती करने वाले किसान पारंपरिक फसलों की तुलना में 5-6 गुना ज्यादा आय (4.00-5.00 लाख रुपये प्रति हेक्टेयर) प्राप्त करते हैं।
  • खेती को नुकसान पहुंचाने वाले जानवर लैवेंडर को नुकसान नहीं पहुंचाते। ये जून-जुलाई के दौरान 30-40 दिनों के लिए एक बार फूल उत्पादन करता है। इससे लैवेंडर तेल, लेवेंडर वॉटर, ड्राई फ्लावर और अन्य चीजें मिलती हैं।
  • एक हेक्टेयर में लगाई फसल से हर साल कम-से-कम 40 से 50 किलोग्राम तेल निकलेगा।लैवेंडर तेल का मूल्य आज करीब 10 हजार रुपये प्रति किलो है।

लैवेंडर की खेती को बढ़ावा

  • भारत सरकार द्वारा जम्मू कश्मीर में किसानो की आय बढ़ाने और आत्मनिर्भर बनाने हेतु लैवेंडर की खेती को प्रोत्साहन दिया जा रहा है।
  • गौरतलब है की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में फसलों की उत्पादकता कम होती है। यहां किसानों के पास कभी-कभी आधा एकड़ या उससे भी कम जमीन होती है।
  • इस खेती से जो आमदनी होती है उससे लोग सालाना खर्चा भी नहीं उठा पाते। इसलिए इन क्षेत्रों में कुछ ऐसी फसलें लगाने की पहल हुई जो किसानों को उनकी पारंपरिक खेती से ज्यादा फायदा दे। इन्हीं में से एक है लैवेंडर की खेती।
  • इसी के चलते CSIR-IIIM द्वारा जम्मू में मार्च 2020 तक सुगंध मिशन (Aroma Mission) के तहत 500 किसानों को 100 एकड़ जमीन में लैवेंडर की खेती के लिए आठ लाख पौधे मुफ्त में दिए गए हैं।
  • पिछले 10 वर्षों में CSIR-IIIM, जम्मू के विभिन्न पहल और उनके कार्यान्वयन के कारण केंद्र शासित प्रदेश में लैवेंडर की खेती के रकबे में उछाल देखा गया है।
  • जम्मू और कश्मीर में 3000 किलोग्राम लैवेंडर ऑयल के वार्षिक उत्पादन के साथ 900 एकड़ के अनुमानित रकबे में लैवेंडर उगाया जा रहा है।
  • संस्थान फसल के रकबे को बढ़ा रहा है। यह राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लैवेंडर ऑयल की बढ़ती हुई मांग को पूरा करने के लिए लैवेंडर की खेती के रकबे को अगले 2-3 वर्षों में 1500 हेक्टेयर तक बढ़ाना चाहता है, ताकि उत्पादन की एक स्थायी व्यवस्था स्थापित की जा सके।

आरोमा मिशन

  • भारत सरकार द्वारा लैवेंडर की खेती को बढ़ावा देने हेतु आरोमा मिशन की भी शुरुआत की गयी है।
  • CSIR द्वारा अरोमा मिशन की शुरुआत किसानों की आजीविका में सुधार लाने वाले भारत सरकार के दृष्टिकोण के अनुरूप की गई थी।
  • इसके तहत किसानों को रोपण सामग्री प्रदान करने के अलावा, शुद्धिकरण इकाइयां भी प्रदान की जाती हैं और उन्हें बेहतर प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है, जिनमें से कई किसान अब उद्यमी बन चुके हैं क्योंकि लैवेंडर तेल की बहुत ही ज्यादा मांग है।
  • CSIR द्वारा जम्मू-कश्मीर में लैवेंडर के अलावा उच्च मूल्य की कई सुगंधित और औषधीय नकदी फसलों की शुरूआत की गई हैं।
  • गौरतलब है की लैवेंडर की खेती को “पर्पल रिवोल्यूशन” या बेंगनी क्रांति की संज्ञा दी गयी है।

Source - PIB

Nirman IAS (Surjeet Singh)

Current Affairs Author