कम होता मधुमक्खियों का जीवनकाल
16 Nov, 2022
चर्चा में क्यों ?
यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के कीट विज्ञानियों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन से पता चला है कि एक नियंत्रित, प्रयोगशाला वातावरण में रखी गई मधुमक्खियों का जीवनकाल 1970 के दशक की तुलना में 50 प्रतिशत कम हो गया।
मुख्य बिंदु :-
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यूनिवर्सिटी ऑफ मैरीलैंड के कीट विज्ञानियों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन से पता चला है कि एक नियंत्रित, प्रयोगशाला वातावरण में रखी गई मधुमक्खियों का जीवनकाल 1970 के दशक की तुलना में 50 प्रतिशत कम हो गया।
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इसका कारण मधुमक्खी पालन व्यवसाय में कॉलोनी में होने वाला बदलाव है, क्योंकि कॉलोनियों में रहने वाली मधुमक्खियां स्वाभाविक रूप से कम उम्र में मर जाती है।
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पिछले एक दशक में मधुमक्खियों के जीवनकाल में यह कमी ज्यादा दिख रही है। इसका मतलब है कि मधुमक्खियों की उम्र बढ़ाने के लिए कॉलोनियों का तरीका बदलना पड़ेगा।
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इसे समझने के लिए शोधकर्ताओं ने पर्यावरणीय तनाव, बीमारियों, परजीवियों, कीटनाशकों के संपर्क और पोषण पर गौर किया।
पहला अध्ययन
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यह पहला अध्ययन है जो संभावित रूप से पर्यावरणीय तनावों से मधुमक्खी के पुरे जीवनकाल में होने वाली गिरावट को दर्शाता है, यह इस ओर इशारा करता है कि पारंपरिक मधुमक्खी पालन उद्योग में देखे जाने वाले बड़े रुझानों को प्रभावित कर सकती है।
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कीट विज्ञान विभाग में शोधकर्ता छात्र और प्रमुख अध्ययनकर्ता एंथोनी नियरमैन ने कहा कि यदि हम कुछ आनुवंशिक कारकों को अलग कर सकते हैं, तो शायद हम प्रजनन के माध्यम से मधुमक्खियों को लंबे समय तक जीवित रख सकते हैं।
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पहले के अध्ययनों को दोहराते हुए, शोधकर्ताओं ने मधुमक्खी के छत्ते से मधुमक्खी के प्यूपा को एकत्र किया, जब प्यूपा मोम की कोशिकाओं से निकलने के 24 घंटों के बराबर के थे, जिसमें उन्हें पाला गया था। एकत्रित मधुमक्खियों ने एक इनक्यूबेटर में बढ़ना शुरू कर दिया और फिर उन्हें वयस्क होने पर विशेष पिंजरों में रखा गया।
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नियरमैन पिंजरों में रह रहे मधुमक्खियों के चीनी के पानी के आहार को सादे पानी के साथ पहले की तरह प्राकृतिक परिस्थितियों की बेहतर नकल करने के प्रभाव का मूल्यांकन कर रहे थे, जब उन्होंने देखा कि आहार की परवाह किए बिना, पिंजरों में रह रहे मधुमक्खियों का औसत जीवनकाल 1970 के दशक में इसी तरह के प्रयोगों में बंद मधुमक्खियों की तुलना में आधा हो गया।
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मधुमक्खियों का जीवन काल जो कि 1970 के दशक में 34.3 दिन था आज यह घट कर 17.7 दिन रह गया है। उन्होंने बताया कि इसमें पिछले 50 वर्षों में प्रकाशित प्रयोगशाला अध्ययनों की गहन समीक्षा की गई।
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पिछले अध्ययनों से यह भी पता चला था कि वास्तविक दुनिया में, मधुमक्खी के जीवन काल में भोजन ढूढ़ने का कम समय और कम शहद उत्पादन के अनुरूप पाए गए थे। उन कारणों को कॉलोनी में होने वाले बदलाव की दरों से जोड़ने वाला यह पहला अध्ययन है।
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जब टीम ने मधुमक्खी पालन पर जीवनकाल में 50 प्रतिशत की कमी के प्रभाव का मॉडल तैयार किया, जहां गायब हुई कॉलोनियों को सालाना बदल दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप नुकसान की दर लगभग 33 प्रतिशत थी।
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यह पिछले 14 वर्षों में मधुमक्खी पालकों द्वारा दी गई जानकारी के औसत के 30 से 40 प्रतिशत की वार्षिक नुकसान की दर के बराबर है।
मधुमक्खि पालन
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उल्लेखनीय है की मधुमक्खियां सबसे बड़ी परागणकर्ता हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, विश्व की लगभग 35% कृषि अभी भी परागणकों पर निर्भर है।
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छोटे व सीमांत किसान व भूमिहीन व बेरोजगार मधुमक्खी पालन को एक वैकल्पिक व्यवसाय के तौर पर अपना सकते हैं। मधुमक्खी परागकण क्रिया द्वारा फसल की पैदावार व गुणवत्ता बढ़ाने में भी सहायक होती है।
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तिलहनी फसलों मुख्यत: राया व सरसों में अच्छी परागण क्रिया से पैदावार में 20-25 प्रतिशत बढ़ोतरी होती है। कई अन्य फसलें जैसे अरहर, बेल वाली सब्जियां, प्याज, गोभी, गाजर, मूली की बीज वाली, अमरूद, नीबू, नाशपती आदि में मधुमक्खियों द्वारा पर परागण से पैदावार बढ़ती है।
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मधुमक्खी पालन से शहद के अतिरिक्त भी अन्य पदार्थ जैसे मोम, प्रोपोलिस पराग, रायल जैली इत्यादि मिलते है, जिससे किसान अधिक लाभ कमा सकता है। दुनियाभर में मधुमक्खी पालन ग्रामीण समुदायों के लिए कम लागत वाला व्यवसाय है।
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लेकिन यह चिन्ता का विषय है कि मानवीय गतिविधियों पेड़-पौधों पर कीटनाशकों का छिड़काव, बढ़ता प्रदूषण, औद्योगिकरण इत्यादि के दुष्प्रभावों के कारण दुनिया भर में मधुमक्खियों की संख्या में भारी कमी आ रही है और यदि ऐसा ही चलता रहा तो आने वाले दिनों में जीवन को लेकर हमें बड़े खतरों का सामना करना पड़ सकता है।
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विशेषज्ञों के अनुसार हमारा जीवन परागणकों पर निर्भर हैं इसलिए उसकी ओर अधिक ध्यान देना और जैव विविधता के नुकसान को रोकना आवश्यक है, मधुमक्खियां जैव विविधता के संरक्षण, प्रकृति में पारिस्थितिक संतुलन और प्रदूषण को कम करने में बेहद उपयोगी भूमिका निभाती हैं।
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मधुमक्खियों के विलुप्त होने से न केवल एक प्रजाति की दुनिया वंचित हो जाएगी, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र और मानव जाति के लिए इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन के आंकड़े बताते हैं कि जब खाद्य आपूर्ति श्रृंखला की वैश्विक सुरक्षा सुनिश्चित करने की बात आती है तो मधुमक्खी और अन्य परागणक अमूल्य हैं।
Source - Down to Earth
Nirman IAS (Surjeet Singh)
Current Affairs Author