Mushroom farming can limit climate change

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जलवायु परिवर्तन को सीमित कर सकती है मशरूम की खेती

21 Mar, 2023

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में शोधकर्ताओं ने अपने एक अध्ययन में बताया की पेड़ों के साथ मशरूम की खेती करोड़ों लोगों का पेट भरने के साथ जलवायु परिवर्तन को सीमित कर सकती है

मुख्य बिंदु :-

  • आबादी बढ़ने के साथ बढ़ती खाद्य जरूरतें कृषि पर तेजी से दबाव डाल रहीं हैं। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए पहले से कहीं ज्यादा कृषि भूमि की मांग बढ़ रही है। नतीजन वनों का तेजी से विनाश किया जा रहा है।
  • लेकिन हाल ही में वैज्ञानिकों ने इस समस्या का एक उपाय सुझाया है, जिसके अनुसार पेड़ों के साथ-साथ मशरूम की खेती न केवल लाखों लोगों को पेट भर सकती है साथ ही इसकी मदद से जलवायु परिवर्तन की समस्या को भी कम किया जा सकता है। देखा जाए तो यह मशरूम कार्बन को कैप्चर करने का भी काम करते हैं।
  • वैज्ञानिकों के मुताबिक यह दृष्टिकोण न केवल कृषि के लिए वन क्षेत्र पर बढ़ते दबाव को कम कर सकता है, साथ ही लोगों को ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण के लिए भी प्रोत्साहित करता है।
  • यूनिवर्सिटी ऑफ स्टर्लिंग के वैज्ञानिकों द्वारा किया यह अध्ययन जर्नल द प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज (पनास) में प्रकाशित हुआ है। 
  • यदि 2010 से 2020 के आंकड़ों को देखें तो जंगल और कृषि के बीच भूमि-उपयोग को लेकर होती खींचतान एक बड़ा वैश्विक मुद्दा बन चुकी है। इसका खामियाजा वन क्षेत्रों को उठाना पड़ रहा है।
  • पता चला है कि इस संघर्ष का ही नतीजा है कि हर साल 47 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में फैले जंगल कम हो रहे हैं। देखा जाए तो कृषि भूमि की बढ़ती मांग वनों के विनाश का सबसे बड़ा कारण है, जिसमें आने वाले समय में और वृद्धि होने की आशंका है।

खाद्य सुरक्षा और वृक्षारोपण को प्रोत्साहन

  • इस बारे में प्रोफेसर पॉल थॉमस द्वारा किए इस विश्लेषण से पता चला है कि जंगलों में खाने योग्य एक्टोमाइकोरिजल कवक (ईएमफ) की खेती ने केवल हर वर्ष 1.9 करोड़ लोगों के लिए पौष्टिक आहार का उत्पादन कर सकती है। साथ ही इसकी मदद से हर वर्ष प्रति हेक्टेयर करीब 12.8 टन कार्बन को वातावरण से हटाया जा सकता है।
  • इस बारे में प्रोफेसर थॉमस का कहना है कि, "हमने माइकोफोरेस्ट्री के उभरते क्षेत्र को देखा है। जहां पेड़ों के साथ कवक की खेती की जा सकती है। यहां वृक्षारोपण की मदद से खाद्य उत्पादन किया जा सकता है। उनके अनुसार इस प्रणाली की मदद से कवक की पैदावार ग्रीनहाउस गैसों को भी प्रभावी तरीके से कम करने में मददगार हो सकती है।
  • उनके अनुसार यह फायदे का सौदा हैं जहां भोजन उत्पादन के साथ हम जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने में सक्रिय रूप से मदद कर सकते हैं। वैज्ञानिकों ने जब इसकी तुलना अन्य प्रमुख खाद्य समूहों से की, तो यह एकमात्र ऐसा समूह है जिसके परिणामस्वरूप इस तरह के लाभ हासिल होंगें। गौरतलब है कि अन्य सभी प्रमुख खाद्य श्रेणियां उत्पादन के दौरान ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को बढ़ाती हैं।
  • उनकी गणना बताती है कि यदि इस प्रणाली को मौजूदा वन गतिविधियों के साथ जोड़ दिया जाए तो इससे खाद्य उत्पादन में अच्छा खासा इजाफा हो सकता है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार यदि इसका उपयोग पिछले दस वर्षों के दौरान वानिकी में किया गया होता तो हम सालाना 1.89 करोड़ लोगों का पेट भरने के लिए पर्याप्त भोजन पैदा कर सकते थे।
  • रिसर्च के मुताबिक यदि अकेले चीन की बात करें तो पिछले दस वर्षों में इसकी मदद से एक ऐसी खाद्य उत्पादन प्रणाली स्थापित की जा सकती थी जो हर साल 46 लाख लोगों के लिए पर्याप्त कैलोरी उत्पादन कर सकती थी।
  • वहीं ब्राजील में यह हर साल 16 लाख और कनाडा में 17 लाख लोगों की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त थी।
  • प्रोफेसर थॉमस के मुताबिक यह उभरती तकनीक है। इसके लाभों को महसूस करने के लिए बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। ऐसे में उन्होंने शोधकर्ताओं से क्षेत्र  के अध्ययन में शामिल होने के साथ संबंधित एजेंसियों से समर्थन का आह्वान किया है।
  • उनका मानना है कि यह प्रणाली खाद्य उत्पादन प्रणाली से बढ़ते उत्सर्जन को कम करने का संभावित मार्ग है। साथ ही यह वैश्विक स्तर पर जैव विविधता के संरक्षण में भी मददगार होगी।
  • यह जहां ग्रामीण स्तर पर सामाजिक-आर्थिक विकास को गति प्रदान करेगी साथ ही वृक्षारोपण की दर में वृद्धि के लिए प्रोत्साहन देगी।

मशरूम के बारे में

  • मशरूम/कुकुरमुत्ता कवक से बना एक मांसल, बीजाणु-युक्त फलने वाला पिण्ड है जो प्रायः जमीन के ऊपर पैदा होता है और भोजन का अच्छा स्रोत है। ये अनेकों आकार-प्रकार के होते हैं।
  • इन्हें हिन्दी में 'छत्रक', 'खुम्ब' या 'खुम्भी' 'सुक्कर' 'भुछत्र' 'भुछत्री' भी कहते हैं। इसे छत्तीसगढ मे फुटु और पिहिरी कहते है।
  • मशरूम खाने में स्वादिष्ट होने के साथ-साथ सेहत के लिए भी बहुत फायदेमंद होता एंटी-ऑक्सीडेंट्स, प्रोटीन, विटामिन डी, सेलेनियम और जिंक से भरपूर मशरूम का इस्तेमाल कई दवाइयां बनाने के लिए किया जाता है।
  • इसमें मौजूद पौषक तत्व मानव शरीर को कई खतरनाक बीमारियों से बचा कर रखते है। इसके अलावा इसका सेवन इम्यून सिस्टम को भी मजबूत करता है।
  • इसमें बीटा ग्लाइसीन और लिनॉलिक एसिड होता है, जो प्रोस्टेट और ब्रेस्ट कैंसर के खतरे को कम करता है।
  • मशरूम में कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा कम होने के कारण यह ब्लड शुगर लेवल को कंट्रोल करने में मददगार होते है। डायबिटीज मरीजों के लिए यह सबसे अच्छा फूड है।
  • कार्बोहाइड्रेट्स की मात्रा से भरपूर मशरूम का सेवन अपच, पेच दर्द, कब्ज, गैस और एसिडिटी की समस्या को भी दूर करता है।
  • ओएस्टर और फ्लोरिडा मशरूम खाने से बोहोत सी प्रकार की बीमारियां ठीक की जा सकती है।

Source – Down to Earth

Nirman IAS Team

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