Repo rate increase by RBI

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रिजर्व बैंक द्वारा रेपो दर में वृद्धि

09 Feb, 2023

चर्चा में क्यों ?

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा में नीतिगत रेपो दर में 0.25 प्रतिशत की बढ़ोतरी की है।

मुख्य बिंदु :-

  • रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने रेपो रेट में 0.25 फीसदी की बढ़ोतरी की है। आरबीआई ने मौजूदा चालू वित्त वर्ष में लगातार छठी बार नीतिगत ब्याज दर में इजाफा किया है। इस बढ़ोतरी के साथ ही रेपो रेट बढ़कर 6.50 फीसदी पर पहुंच गई है।
  • जनवरी-मार्च 2023 के दौरान उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई दर 5.6 फीसदी रहने की उम्मीद है, जबकि पिछले साल इसी समय पर यह 5.9 फीसदी रही थी।
  • वहीं आरबीआई गवर्नर ने वित्त वर्ष 2023-24 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 6.5 फीसदी रहने का अनुमान जताया है। हालांकि, आरबीआई गवर्नर ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 के लिए भारत की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान 7 फीसदी ही रखा गया है।
  • आरबीआई गवर्नर ने वित्त वर्ष 2023-24 में महंगाई दर 4 फीसदी के दायरे से ऊपर रहने की संभावना जताई है। उल्लेखनीय है कि आरबीआई ने इससे पहले दिसंबर, 2022 में रेपो दर में 0.35 फीसदी की बढ़ोतरी की थी।

क्या होती है रेपो रेट:

  • जब हमें पैसे की जरूरत हो और अपना बैंक अकाउंट खाली हो तो हम बैंक से कर्ज लेते हैं। इसके बदले हम बैंक को ब्याज चुकाते हैं। इसी तरह बैंक को भी अपनी जरूरत या रोजमर्रा के कामकाज के लिए काफी रकम की जरूरत पड़ती है। इसके लिए बैंक भारतीय रिजर्व बैंक से कर्ज लेते हैं। बैंक इस लोन पर रिजर्व बैंक को जिस दर ब्याज चुकाते हैं, उसे रेपो रेट कहते हैं।

रेपो रेट का प्रभाव -

  • जब बैंक को रिजर्व बैंक से कम ब्याज दर पर लोन मिलेगा तो उनके फंड जुटाने की लागत कम होगी। इस वजह से वे अपने ग्राहकों को सस्ता कर्ज दे सकते हैं। इसका मतलब यह है कि रेपो रेट कम होने पर हमारे लिए होम, कार या पर्सनल लोन पर ब्याज की दरें कम हो सकती हैं

रिवर्स रेपो रेट

  • देश में कामकाज कर रहे बैंकों के पास जब दिन-भर के कामकाज के बाद रकम बची रह जाती है, तो उस रकम को भारतीय रिजर्व बैंक में रख देते हैं। इस रकम पर आरबीआई उन्हें ब्याज देता है। भारतीय रिजर्व बैंक इस रकम पर जिस दर से बैंकों को ब्याज देता है, उसे रिवर्स रेपो रेट कहते हैं।

रिवर्स रेपो रेट में बदलाव का प्रभाव

  • जब भी बाज़ार में नकदी की उपलब्धता बढ़ जाती है तो महंगाई बढ़ने का खतरा पैदा हो जाता है। आरबीआई इस स्थिति में रिवर्स रेपो रेट बढ़ा देता है, ताकि बैंक ज्यादा ब्याज कमाने के लिए अपनी रकम उसके पास जमा करा दें। इस तरह बैंकों के कब्जे में बाजार में बांटने के लिए कम रकम रह जाती है।

नकद आरक्षित अनुपात (CRR)

  • भारत में कामकाज कर रहे बैंकों के लिए कुछ दिशा निर्देश बनाए गए हैं। ये नियम रिजर्व बैंक ने बनाये हैं। बैंकिंग नियमों के तहत हर बैंक को अपने कुल कैश रिजर्व का एक निश्चित हिस्सा रिजर्व बैंक के पास रखना ही होता है। इसे कैश रिजर्व रेश्यो अथवा नकद आरक्षित अनुपात (CRR) कहते हैं।
  • आरबीआई ने ये नियम इसलिए बनाए हैं, जिससे किसी भी बैंक में बहुत बड़ी संख्या में ग्राहकों को रकम निकालने की जरूरत पड़े तो बैंक पैसे देने से मना न कर सके।

CRR का प्रभाव 

  • अगर CRR बढ़ता है तो बैंकों को अपनी पूंजी का बड़ा हिस्सा भारतीय रिजर्व बैंक के पास रखना होगा। इसके बाद देश में कामकाज कर रहे बैंकों के पास ग्राहकों को कर्ज देने के लिए कम रकम रह जाएगी। आम आदमी और कारोबारियों को कर्ज देने के लिए बैंकों के पास कम पैसे रहेंगे।
  • अगर रिजर्व बैंक CRR को घटाता है तो बाजार में नकदी का प्रवाह बढ़ जाता है। आरबीआई CRR में बदलाव तभी करता है, जब बाज़ार में नकदी की तरलता पर तुरंत असर नहीं डालना हो।
  • वास्तव में रेपो रेट और रिवर्स रेपो रेट में बदलाव की तुलना में CRR में किए गए बदलाव से बाज़ार में नकदी की उपलब्धता पर ज्यादा वक्त में असर पड़ता है

वैधानिक तरलता अनुपात (SLR):

  • रिजर्व बैंक अर्थव्यवस्था में नकदी की स्थिति को नियंत्रित करने के लिए जिन उपायों का सहारा लेता है उनमें SLR एक महत्वपूर्ण उपाय है। स्टेचुअरी लिक्विडिटी रेश्यो या वैधानिक तरलता अनुपात बैंकों के पास उपलब्ध जमा का वह हिस्सा होता है, जोकि उन्हें अपनी जमा पर लोन जारी करने के पहले अपने पास रख लेना जरूरी होता है।
  • SLR नकदी, स्वर्ण भंडार, सरकारी प्रतिभूतियों जैसे किसी भी रूप में हो सकता है।
  • जब बैंक इस अनुपात को सुरक्षित रख लेते हैं, उसके बाद ही उन्हे अपनी जमा पर लोन जारी करने की अनुमति होती है।
  • SLR का यह अनुपात कितना होगा, इसका निर्धारण रिजर्व बैंक करता है। भारत में SLR की अधिकतम सीमा 40 फीसदी तक रह चुकी है।
  • रिजर्व बैंक को बैंकों के लिए SLR की सीमा 40 फीसदी और न्यूनतम शुन्य फीसदी तक भी रखने का अधिकार है।

SLR का प्रभाव

  • SLR से बैंकों के कर्ज देने की क्षमता नियंत्रित होती है। अगर कोई बैंक मुश्किल परिस्थिति में फंस जाता है तो रिजर्व बैंक SLR की मदद से ग्राहकों के पैसे की कुछ हद तक भरपाई कर सकता है।

मार्जिनल स्टैंडिंग फैसिलिटी (MSF)

  • आरबीआई ने पहली बार वित्त वर्ष 2011-12 में सालाना मॉनेटरी पॉलिसी रिव्यू में MSF का जिक्र किया था। यह कॉन्सेप्ट 9 मई 2011 को लागू हुआ।
  • इसमें सभी शेड्यूल कमर्शियल बैंक एक रात के लिए अपने कुल जमा का 1 फीसदी तक लोन ले सकते हैं। बैंकों को यह सुविधा शनिवार को छोड़कर सभी वर्किंग डे में मिलती है।

Source – All India Radio

Nirman IAS (Surjeet Singh)

Current Affairs Author